पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ होती हैं – ज्योर्तिविद कालज्ञ पं. संजय शर्मा
ज्योर्तिविद कालज्ञ पं. संजय शर्मा 9893129882 , 9424828545 ( Paytm , PhonePe , GPay )
ज्योतिष लेखक, ज्योतिष एवं वास्तु परामर्ष , रत्न विशेषज्ञ , प्रेरक (मोटीवेटर)
कलर थेरेपिस्ट एवं औरा रीडर
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पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ होती हैं ।
उनमें मार्च-अप्रेल व सितंबर-अक्टोबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं ।
इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है ।
ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अतः उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णतः स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम ’नवरात्र’ है ।
इस वर्ष माता का आगमन गज पर हो रहा है एवं घट स्थापना एवं पूजन के लिये सर्वश्रेष्ठ मुहुर्त प्रातः 9 बजकर 17 मिनट से 12 बजकर 11 मिनट तक सर्वश्रेष्ठ रहेगा
नवरात्री के नौ दिन नवदुर्गा की पूजा से किस प्रकार ग्रहशांति हो सकती है कौनसी माता किस ग्रह को शांत करने में मदद करती है । मंत्र में केवल उस दिन विशेष की देवी मां का नाम जोडकर स्वयं मंत्र तैयार कर सकते है । पहली मां शैलपुत्री है जिनका वाहन वृषभ है इसीलिये इन्हे वृषारूढा भी कहते है मां के एक हाथ में त्रिशूल एवं दूसरे में कमल का फूल है , इनकी मुखाकृति प्रसन्नचित होती है , इनके इसी रूप के कारण ये चंद्रमा के दुष्प्रभावों का दमन करती है । देवि शैलपुत्री की आराधना करने से चंद्रमा के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है । इस वर्ष इनकी पूजा 15 अक्टोबर यानि प्रतिपदा को होगी । मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
द्वितीय माता ब्रम्हचारिणी जिन्होने हजारों वर्षों की तपस्या केवल शाकाहार एवं फूलपत्तों के बल पर ही किया और हर जगह नंगे पैरों पर ही विचरण किया इनका कोई वाहन नही है नंगे पैर भूमि पर विचरण करने के कारण वे मंगल की देवि मानी गई और मंगल के दुष्प्रभावों को समाप्त करने में मां ब्रम्हचारिणी की उपासना करने से मंगल जनित किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है । इनके एक हाथ में कमंडल व दूसरे हाथ में माला है , माला से वे निरंतर जाप में सलग्न रहती है । इस वर्ष इनकी पूजा 16 अक्टोबर यानि द्वितिया को होगी। मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रम्हचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
तृतीय दिन देवि चंद्रघटा के लिये इस रूप में मां के मस्तक पर चंद्रमा एक मुकुट के समान होता है परन्तु वह आधा चंद्रमा घंटे के समान दिखई देता है इसी कारण इन्हे चंद्रघंटा कहा जाता है । इनका वाहन बाघिन है । ये माता पार्वती का ही एक रूप है। इनके अस्त्र शस्त्रों में त्रिशूल,गदा, तलवार है एवं एक हाथ में कमंडल है । माता भक्तों की शांति और कल्याण के लिये ही होती है जो लोग शुक्र के दुष्प्रभाव से पीडित है उन्हे माता की आराधना अवश्य करना चाहिये इस वर्ष माता की पूजा 17 अक्टोबर यानि तृतीया को होगी। मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
चौथा दिन मां कुष्माण्डा के लिये होता है मां के पास शक्ति एवं ऐसी योग्यता होती है जिससे वे सूर्य के अंदर भी निवास कर सकती है । मां की मुखाकृति चमक एवं तेज से दीप्त रहता है । माता की पूजा में भूरे कद्दू की बली का भी विधान है इनका वाहन शेरनी है । इनके पास सूर्य में रहने की शक्ति होती है अतः ये सूर्य की देवि है और सूर्य के दुष्प्रभावों को समाप्त करने के लिये मां कुष्माण्डा की आराधना करना चाहिये । इस वर्ष माता की पूजा 18 अक्टोबर यानि चतुर्थी को होगी । मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कुष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
भगवती पार्वती जब कार्तीकेय की माता बनी चूंकि कार्तीकेय का दूसरा नाम स्कंध भी है इसीलिये वे स्कंधमाता कहलाई वे कमल पर विराजमान है इसीलिये उन्हे पद्मासना भी कहते है । उनका वहान उग्र शेर वे भवान गणेश एवं कार्तीकेय की माता है अतः इनका ग्रह बुध है, बुध संबंधी दुष्प्रभावों को शांत करने के लिये भगवती स्कंधमाता की आराधना इस वर्ष 19 अक्टोबर यानि पंचमी को करना है । मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
महिषसुर का वध करने के लिये माता पार्वती ने माता कात्यायनि का रूप धारण किया यह माता के समस्त रूपों में सर्वाधिक विकराल रूप माना जाता है उनके इस विध्वंसक रूप को कात्यायनि का नाम से जाना जाता है । उनका जन्म संत कात्या के यहां हुआ था इसलिये भी उन्हे कात्यायनि के नाम से जाना जाता है । गुरू ग्रह के दुष्प्र्रभावों को शांत करने के लिये भगवती कात्यायनि की आराधना इस वर्ष 20 अक्टोबर यानि षष्ठी को करना है
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दैत्यों शुम्भ एवं निशुम्भ का वध करने के लिये माता पार्वती ने अपनी गौरी चमडी का त्याग किया और काली चमडी को धारण किया वे काली रात के समान दिखाई देने लगी इसीलिये उन्हे कालरात्री के नाम से जाना जाता है । यह माता का अत्यंत डरावना रूप है। इनका वाहन गधा है । शनि ग्रह के दुष्प्रभावों को शांत करने के लिये माता भगवती कालरात्री की आराधना इस वर्ष 2़1 अक्टोबर यानि सप्तमी को करना है । मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
माता शैलपुत्री जब 16 वर्ष की थी तब उनका रंग श्वेत था उनकी तुलना चंद्रमा एवं शंख से भी की जाती है इस श्वेत वर्ण के कारण ही वे महागौरी हुई । उनके एक हाथ में डमरू वर दूसरा वरमुद्रा में है । इनका वाहन वृषभ है । राहू ग्रह के दुष्प्रभावों को शांत करने के लिये भगवती महागौरी की आराधना करना चाहिये । भगवती महागौरी की आराधना इस वर्ष 22 अक्टोबर यानि अष्टमी को करना है । मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
माता का यह रूप सर्वोत्तम शक्ति वाला है उनका अवतरण भगवान शिव के बांये हाथ से हुआ । ये संपूर्ण सिद्धियां प्रदान करने वाली है, इनकी आराधना केवल मनुष्य ही नही अपितु देव और गंर्धव भी उनकी आराधना करके सिद्धि प्राप्त करते है । ये शेर की सवारी करती है । केतु के दुष्प्रभावों का शांत करने के लिये भगवती सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है । भगवती सिद्धिदात्री की आराधना इस वर्ष 23 अक्टोबर यानि नवमी को करना है । मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
विजयकाल एवं विजय मुर्हुत भी दिनांक 23 अक्टोबर को ही रहेगा अतः विजयादशमी का पर्व भी 23 अक्टोबर को ही मनाया जावेगा
ज्योर्तिविद कालज्ञ पं. संजय शर्मा
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