इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मार्मिक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 9 साल की बच्ची की कस्टडी उसकी दत्तक मां मीना को वापस लौटाने का आदेश दिया है। मीना बच्ची को 2014 से अपना रही थीं, लेकिन बाल कल्याण समिति के एक फैसले से उन्हें यह हक छीन लिया गया था।
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि शायद मीना के पहले से चार जैविक बच्चों के होने के कारण ही उन्हें कस्टडी से वंचित किया गया था। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि गोद लेने या पालन-पोषण को नकारात्मक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए और इसे सामाजिक मानदंडों के अनुरूप होना चाहिए।
मीना ने 2014 में अर्जुन उर्फ अंजलि नामक एक तीसरे लिंग के व्यक्ति से बच्ची को लिया था और उसका पालन-पोषण कर रही थीं। अक्टूबर 2021 में बच्ची का अपहरण हो गया था, लेकिन बाद में उसे बचा लिया गया और दिसंबर में काउंसलिंग के बाद मीना की कस्टडी में वापस भेज दिया गया था। हालांकि, जिला प्रोबेशन अधिकारी की एक रिपोर्ट के आधार पर बच्ची को फिर से सरकारी आश्रम भेज दिया गया।
कोर्ट ने इस रिपोर्ट को यांत्रिक रूप से तैयार बताया और बच्चे के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए मीना की याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मीना एक हफ्ते के भीतर बच्ची के गोद लेने के लिए आवेदन करें और जिला प्रोबेशन अधिकारी बच्चे के विकास पर समय-समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करे।
इस फैसले से न केवल मीना और बच्ची के लिए उम्मीद की किरण जगी है, बल्कि गोद लेने और पालन-पोषण के मामलों में सामाजिक दृष्टिकोण पर भी सवाल खड़े हुए हैं। कोर्ट ने यह संदेश दिया है कि जैविक माता-पिता नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि कोई परिवार का पूरा हक नहीं ले सकता।