Video : मासिक धर्म के दौरान स्त्री को स्पर्श करने से क्या होता है? स्त्रियों को मासिक धर्म क्यों आता है
"क्या आप जानते हैं, मासिक धर्म सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा एक गहरा रहस्य है? क्यों हमारे शास्त्रों में रजस्वला स्त्रियों को पूजा-पाठ, तुलसी के स्पर्श, और रसोई में जाने से रोका गया है? क्या सच में मासिक धर्म को ब्रह्म हत्या के पाप से जोड़ा गया है? और क्या पुरुषों को मासिक धर्म वाली स्त्रियों से दूरी बनानी चाहिए?"
“क्या आप जानते हैं, मासिक धर्म सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा एक गहरा रहस्य है?
क्यों हमारे शास्त्रों में रजस्वला स्त्रियों को पूजा-पाठ, तुलसी के स्पर्श, और रसोई में जाने से रोका गया है?
क्या सच में मासिक धर्म को ब्रह्म हत्या के पाप से जोड़ा गया है?
और क्या पुरुषों को मासिक धर्म वाली स्त्रियों से दूरी बनानी चाहिए?”
दोस्तों, हर महीने महिलाएँ एक प्राकृतिक प्रक्रिया से गुजरती हैं, जिसे हम मासिक धर्म कहते हैं। यह प्रक्रिया जितनी सामान्य है, उतनी ही रहस्यमयी और विवादित।
आज का यह वीडियो केवल इस शारीरिक प्रक्रिया को समझने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसके धार्मिक, पौराणिक, और वैज्ञानिक पहलुओं का भी रहस्योद्घाटन करेगा।
तो आइए, इस अद्भुत यात्रा पर चलते हैं, जहाँ हम समझेंगे कि मासिक धर्म क्या है, इससे जुड़े शास्त्रीय नियम क्या कहते हैं, और यह प्रक्रिया समाज, धर्म, और महिलाओं के जीवन को कैसे प्रभावित करती है।”
“सबसे पहले, विज्ञान के दृष्टिकोण से मासिक धर्म को समझते हैं। यह एक शारीरिक प्रक्रिया है, जो महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का संकेत है।
हर महीने, महिलाओं के गर्भाशय की परत मोटी हो जाती है, ताकि गर्भावस्था के लिए जगह बनाई जा सके। यदि गर्भधारण नहीं होता, तो यह परत टूटकर रक्त के रूप में बाहर निकलती है।
यह चक्र औसतन 28 दिनों का होता है और 3 से 7 दिनों तक चलता है।
लेकिन दोस्तों, विज्ञान केवल इस प्रक्रिया का ‘कैसे’ बताता है, ‘क्यों’ नहीं। इसके ‘क्यों’ को समझने के लिए हमें पौराणिक कथाओं की ओर देखना होगा।” “पद्म पुराण में इस प्रक्रिया से जुड़ी एक अद्भुत कथा मिलती है।
सत्ययुग में असुर वृत्रासुर और देवताओं के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। वृत्रासुर के अत्याचार से परेशान होकर देवता ब्रह्मदेव के पास गए।
ब्रह्मदेव ने सुझाव दिया कि महर्षि दधीचि के शरीर की हड्डियों से वज्र बनाया जाए।
जब इंद्र ने उस वज्र से वृत्रासुर का वध किया, तो ब्रह्महत्या का दोष इंद्र पर लग गया।
इंद्र ने ब्रह्महत्या से मुक्ति के लिए ब्रह्मदेव से प्रार्थना की।
ब्रह्मदेव ने ब्रह्महत्या को चार भागों में बाँटा – अग्नि, जल, वृक्ष, और स्त्रियों में।
स्त्रियों में यह दोष मासिक धर्म के रूप में प्रकट हुआ।”
“लेकिन दोस्तों, क्या ब्रह्महत्या का यह हिस्सा स्त्रियों के जीवन को प्रभावित करता है? और क्या इससे जुड़े नियमों का पालन करना जरूरी है? आइए जानते हैं। शास्त्रों में मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों के लिए कई नियम बनाए गए हैं। इनका उद्देश्य केवल पवित्रता बनाए रखना नहीं, बल्कि महिलाओं के स्वास्थ्य और आराम का ध्यान रखना भी है।
पूजा-पाठ से दूरी:
मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को मंदिर में प्रवेश और पूजा से दूर रहने की सलाह दी गई है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दौरान महिलाओं का शरीर कमजोर होता है और उन्हें आराम की आवश्यकता होती है।
तुलसी का स्पर्श:
तुलसी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। मासिक धर्म के दौरान इसे स्पर्श करना वर्जित है, ताकि उसकी पवित्रता बनी रहे।
रसोई का कार्य:
महिलाओं को रसोई के कार्यों से दूर रहने की सलाह दी गई है। यह उन्हें शारीरिक श्रम से बचाने का तरीका है।
शारीरिक संबंध:
मासिक धर्म के दौरान पति-पत्नी के संबंध वर्जित माने गए हैं। इसे शास्त्रों में ब्रह्महत्या के समान पाप कहा गया है। क्या आप जानते हैं कि मासिक धर्म के दौरान बनाए गए ये नियम स्त्रियों के लिए कैसे फायदेमंद हैं? आगे जानिए पद्म पुराण में एक और रोचक कथा मिलती है।
देव शर्मा नाम के एक धर्मपरायण ब्राह्मण ने सत्यनारायण पूजा का आयोजन किया।
रात्रि के समय, उन्होंने अपने घर के बाहर कुतिया और बैल को बात करते सुना।
कुतिया ने बताया कि वह उनके पिछले जन्म की माँ थी, और बैल उनके पिता।
दोनों ने अपने पापों के कारण पशु योनि में जन्म लिया।
उनके पाप क्या थे?
पिता ने मासिक धर्म के दौरान अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाए।
माँ ने रजस्वला अवस्था में भगवान को भोग अर्पित किया और तुलसी का स्पर्श किया।
इस पाप के कारण उन्हें अगले जन्म में पशु योनि का कष्ट सहना पड़ा।
देव शर्मा ने मुनि वशिष्ठ के मार्गदर्शन में अपने माता-पिता की मुक्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण किया। शास्त्रों में मासिक धर्म के दौरान कई कार्यों को वर्जित बताया गया है।
पूजा-पाठ और भगवान का भोग।
तुलसी का स्पर्श और जल अर्पण।
बाल धोना।
शारीरिक संबंध।
इन नियमों का पालन न करने पर परिवार पर लक्ष्मी का वास नहीं होता और अनेक दोष उत्पन्न हो सकते हैं।”
लेकिन, इन नियमों का क्या वैज्ञानिक आधार है? आइए इसे समझते हैं। आज विज्ञान ने इस प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझा है।
मासिक धर्म के दौरान महिलाओं का शरीर कमजोर होता है, इसलिए उन्हें आराम की जरूरत होती है।
पूजा और तुलसी से दूरी संक्रमण और ऊर्जा बचाने के लिए है।
शारीरिक संबंधों से बचाव संक्रमण और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।
समाज में मासिक धर्म को लेकर कई भ्रांतियाँ हैं। इसे गंदा या शर्म का विषय माना जाता है।
हमें इसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में अपनाना चाहिए और महिलाओं को इसे लेकर जागरूक करना चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार, लक्ष्मी माता ने वचन दिया था कि जो महिलाएँ मासिक धर्म के दौरान शास्त्रों में बताए गए नियमों का पालन नहीं करेंगी, उनके घर में लक्ष्मी का वास नहीं होगा।
यह नियम महिलाओं के स्वास्थ्य और समाज की पवित्रता को बनाए रखने के लिए थे। दोस्तों, मासिक धर्म केवल एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह महिलाओं के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इससे जुड़े धार्मिक और सामाजिक नियम हमें सिखाते हैं कि हमें महिलाओं का सम्मान करना चाहिए और उन्हें इस समय आराम और समर्थन देना चाहिए।
आइए, मासिक धर्म से जुड़े मिथकों को तोड़ें और इसे एक प्राकृतिक प्रक्रिया के रूप में अपनाएं।
यह कथा उन पौराणिक रहस्यों और धार्मिक मान्यताओं का वर्णन करती है जो स्त्रियों के मासिक धर्म से जुड़ी हुई हैं। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के बीच संवाद के माध्यम से, यह कहानी यह समझाने का प्रयास करती है कि स्त्रियों को मासिक धर्म का श्राप क्यों मिला, और मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों के लिए कौन-कौन से कार्य वर्जित माने गए हैं। यह कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को भी गहराई से छूती है।Mythological Story
सृष्टि के सबसे पवित्र स्थल, क्षीर सागर, में शेषनाग की शैया पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी विश्राम कर रहे थे। चारों ओर का वातावरण शांत, दिव्य और पवित्र था। माता लक्ष्मी के मन में एक प्रश्न उत्पन्न हुआ, और वे तुरंत भगवान विष्णु से यह शंका व्यक्त करने के लिए प्रेरित हुईं।
माता लक्ष्मी ने कहा,
“हे प्रभु! मेरे मन में एक शंका उत्पन्न हो रही है। आप ही इस शंका का समाधान कर सकते हैं। कृपया मेरी शंका को दूर करें।”
भगवान विष्णु ने मुस्कुराते हुए कहा,
“हे देवी! तुम्हारे मन में जो भी शंका है, तुम निसंकोच होकर मुझसे पूछो। मैं तुम्हारे सभी प्रश्नों का समाधान अवश्य करूंगा।”
माता लक्ष्मी ने गंभीर स्वर में पूछा,
“हे प्रभु! यह बताइए कि स्त्रियों को मासिक धर्म की पीड़ा क्यों सहनी पड़ती है? किस श्राप के कारण ऐसा हुआ? और दूसरा, एक रजस्वला स्त्री को कौन-कौन से कार्य नहीं करने चाहिए जिससे उन्हें पाप लगता है? कृपया इन प्रश्नों का समाधान करके मेरा ज्ञान बढ़ाएं।”
भगवान विष्णु ने उत्तर दिया,
“हे देवी! आज तुमने मानव जाति के कल्याण के लिए बहुत ही उत्तम प्रश्न किया है। इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए हमें सत्ययुग की ओर लौटना होगा।”
सत्ययुग का दैत्य-वृत्तासुर और देवताओं का संघर्ष
भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को बताया:
“सत्ययुग में दानवों का राजा, वृत्तासुर, अपने उग्र स्वभाव और शक्तिशाली तप के कारण, देवताओं के लिए आतंक का कारण बन गया। वह इतना शक्तिशाली हो गया कि उसने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। देवता उसके प्रहारों से डरकर ब्रह्मदेव के पास पहुँचे।”
ब्रह्मदेव ने देवताओं को सलाह दी:
“हे देवगण! वृत्तासुर को पराजित करने के लिए तुम्हें महर्षि दधीचि के शरीर की हड्डियों से एक विशेष अस्त्र, वज्र, बनाना होगा। केवल इस वज्र के माध्यम से ही वृत्तासुर का वध संभव है।”
महर्षि दधीचि, जो अपनी तपस्या और त्याग के लिए प्रसिद्ध थे, ने संसार के कल्याण के लिए अपनी हड्डियाँ दान कर दीं। उन हड्डियों से वज्र बनाया गया, और इंद्र ने वृत्तासुर का वध किया। वृत्तासुर की मृत्यु के बाद, उसकी आत्मा से ब्रह्महत्या उत्पन्न हुई, जो इंद्र का पीछा करने लगी।
ब्रह्महत्या का विभाजन
भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा:
“देवराज इंद्र ब्रह्महत्या के भय से त्रस्त होकर ब्रह्मदेव के पास पहुँचे। ब्रह्महत्या को शांत करने के लिए ब्रह्मदेव ने इसे चार भागों में विभाजित कर दिया। उन्होंने ब्रह्महत्या को चार स्थानों पर भेजा:
- अग्नि में
- जल में
- वृक्षों में
- स्त्रियों में
स्त्रियों में इसका प्रकट रूप मासिक धर्म के रूप में हुआ। यह प्रक्रिया हर महीने होती है, ताकि स्त्रियों के शरीर और आत्मा की शुद्धि हो सके।”
मासिक धर्म का धार्मिक और सामाजिक महत्त्व Mythological Story
माता लक्ष्मी ने पूछा,
“हे प्रभु! यदि मासिक धर्म शुद्धि का एक माध्यम है, तो फिर शास्त्रों में इसके लिए इतने नियम और प्रतिबंध क्यों हैं? क्यों रजस्वला स्त्री को पूजा-पाठ, तुलसी का स्पर्श, और अन्य पवित्र कार्यों से दूर रहने के लिए कहा जाता है?”
भगवान विष्णु ने उत्तर दिया:
“हे देवी! मासिक धर्म के दौरान स्त्री का शरीर ऊर्जा और शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुजरता है। इस समय उसे विश्राम और आत्म-चिंतन की आवश्यकता होती है। शास्त्रों में बनाए गए नियम स्त्रियों के स्वास्थ्य और समाज की पवित्रता बनाए रखने के लिए थे।”
रजस्वला स्त्रियों के लिए नियम और उनके कारण Mythological Story
भगवान विष्णु ने विस्तार से बताया:
1. पूजा-पाठ से दूरी:
मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को पूजा और धार्मिक कार्यों से दूर रहने की सलाह दी गई है। इसका कारण यह है कि उनका शरीर उस समय शुद्धिकरण प्रक्रिया से गुजर रहा होता है।
2. तुलसी का स्पर्श:
तुलसी को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। मासिक धर्म के दौरान तुलसी का स्पर्श करना वर्जित है, ताकि इसकी पवित्रता बनी रहे।
3. शारीरिक श्रम से बचाव:
मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को रसोई और अन्य शारीरिक कार्यों से बचने की सलाह दी गई है। इसका उद्देश्य उन्हें आराम देना और उनकी ऊर्जा को बनाए रखना है।
4. पति के साथ संबंध:
इस समय पति-पत्नी के संबंध को वर्जित माना गया है। इसे ब्रह्महत्या के पाप के समान कहा गया है, क्योंकि यह शारीरिक और आध्यात्मिक दोष उत्पन्न कर सकता है।
पौराणिक कथा – देव शर्मा की शिक्षा
सदियों से पौराणिक कथाएँ हमारे जीवन को दिशा देने वाली शिक्षाओं का स्रोत रही हैं। ये न केवल हमें धर्म और अधर्म का भेद सिखाती हैं, बल्कि जीवन के गहरे सत्य भी उजागर करती हैं। ऐसी ही एक कथा है धर्मपरायण ब्राह्मण देव शर्मा की, जिन्होंने अपने माता-पिता की मुक्ति के लिए अपार तप और त्याग किया। यह कहानी न केवल उनके तप की महिमा गाती है, बल्कि हमें यह भी सिखाती है कि जीवन में शास्त्रों के नियमों का पालन क्यों आवश्यक है, विशेषकर मासिक धर्म के दौरान।
प्राचीन काल में, मध्य देश में एक अत्यंत धर्मनिष्ठ ब्राह्मण देव शर्मा अपनी पत्नी भगना के साथ रहते थे। उनका जीवन शुद्ध, पवित्र और पूर्णत: धर्म के मार्ग पर आधारित था।
हर सुबह सूर्योदय से पहले, देव शर्मा अपनी दैनिक पूजा और जप में लीन हो जाते। वे यज्ञ, दान, और साधु-संतों की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर चुके थे। उनके घर में आने वाला हर अतिथि, चाहे वह गरीब हो या अमीर, खाली हाथ नहीं लौटता था।
उनकी पत्नी भगना, उनकी सच्ची साथी थीं। वह अपने पति की इच्छाओं का पालन करतीं और धर्म-कर्म में उनका सहयोग करतीं। उन्होंने गृहस्थ जीवन को धर्म का एक माध्यम मानकर अपने कर्तव्यों का पालन किया। एक दिन, अपने धर्म-कर्म में मग्न देव शर्मा को विचार आया कि उन्होंने अब तक भगवान सत्यनारायण की पूजा नहीं की है। सत्यनारायण की पूजा को सुख, शांति, और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने अपनी पत्नी भगना से चर्चा की और तय किया कि वे अपने घर पर भव्य पूजा का आयोजन करेंगे। पूजा के दिन घर को पवित्र और दिव्य वातावरण से सजाया गया। भगवान सत्यनारायण का सुंदर स्वरूप स्थापित किया गया। मंत्रोच्चारण के साथ पूजा शुरू हुई, और नगर के सभी ब्राह्मणों और निवासियों को आमंत्रित किया गया।
रात्रि के समय, जब सभी पूजा और भोजन के बाद विश्राम कर रहे थे, देव शर्मा अपने घर के द्वार पर खड़े होकर चिंतन कर रहे थे। तभी उन्होंने अपने आंगन में एक अद्भुत दृश्य देखा—एक कुतिया और बैल आपस में बातें कर रहे थे।
कुतिया ने दुख भरे स्वर में कहा,
“हे स्वामी! आज मैं अत्यंत पीड़ा में हूँ। हमने अपने पुत्र का पालन-पोषण किया, उसे जीवन के हर सुख-दुख में सहयोग दिया। लेकिन आज हम इस पशु योनि में हैं। यह हमारी अपनी गलतियों का परिणाम है।”
बैल ने गहरी आवाज में उत्तर दिया,
“तुम सही कहती हो। हमने अपने पूर्व जन्म में धर्म का उल्लंघन किया। हमने शास्त्रों में बताए गए नियमों को तोड़ा। यही कारण है कि आज हम इस योनि में हैं।”
देव शर्मा ने ध्यानपूर्वक सुनते हुए पूछा,
“तुम कौन हो? और यह कैसे संभव है कि तुम मेरी माता-पिता हो?”
कुतिया ने उत्तर दिया,
“हे पुत्र! हम तुम्हारे माता-पिता हैं। हमने अपने जीवन में ऐसे कर्म किए, जिनके कारण हमें इस योनि में जन्म लेना पड़ा।”
बैल ने विस्तार से बताया,
“मैंने अपने जीवन में मासिक धर्म के दौरान तुम्हारी माता के साथ संबंध बनाए। यह धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध है।”
कुतिया ने कहा,
“मैंने मासिक धर्म के दौरान पूजा की, तुलसी का स्पर्श किया, और भगवान को अशुद्ध भोग अर्पित किया। यह सब शास्त्रों के अनुसार वर्जित है। यही कारण है कि हमें इस योनि में पीड़ा सहनी पड़ रही है।”
अपने माता-पिता की पीड़ा सुनकर, देव शर्मा का हृदय करुणा से भर गया। वे रातभर सो नहीं सके। उन्होंने निश्चय किया कि वे अपने माता-पिता की मुक्ति के लिए उपाय करेंगे।
अगले दिन, वे तपस्वी मुनि वशिष्ठ के आश्रम गए। मुनि वशिष्ठ ने उनका आदरपूर्वक स्वागत किया और उनकी चिंता का कारण पूछा।
देव शर्मा ने पूरी घटना सुनाई और पूछा,
“हे मुनिवर! मेरे माता-पिता को इस योनि से मुक्ति कैसे मिलेगी?”
मुनि वशिष्ठ ने गहन ध्यान लगाकर कहा,
“हे ब्राह्मण! तुम्हारे माता-पिता ने अपने पूर्व जन्म में जो पाप किए, वे उनके इस जन्म की पीड़ा का कारण हैं। लेकिन उनके लिए मुक्ति संभव है। तुम अमावस्या के दिन उनका विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण करो। गायों की सेवा करो, और गरीबों को भोजन कराओ। इन पुण्य कर्मों से उनके पापों का नाश होगा।”
देव शर्मा ने मुनि वशिष्ठ के निर्देशानुसार श्राद्ध और तर्पण का आयोजन किया। उन्होंने गौमाता को मिष्ठान खिलाया, गरीबों को दान दिया, और अपने माता-पिता की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ किया।
उनके इन कर्मों से उनके माता-पिता को मुक्ति मिली। वे दिव्य रूप में प्रकट होकर आशीर्वाद देते हुए कहा,
“हे पुत्र! तुम्हारे तप और त्याग से हमें मुक्ति मिली। हम धन्य हैं कि तुम जैसे पुत्र का जन्म हमें मिला।”
भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा:
“देवी! यह कथा यह सिखाती है कि धर्म और शास्त्रों का पालन क्यों आवश्यक है। मासिक धर्म के दौरान बनाए गए नियम स्त्रियों के स्वास्थ्य, सम्मान, और शुद्धता को बनाए रखने के लिए थे।”
माता लक्ष्मी ने कहा:
“जो स्त्रियाँ मासिक धर्म के दौरान शास्त्रों के नियमों का पालन करेंगी, उनके घर में मेरा वास होगा। और जो इन नियमों का पालन नहीं करेंगी, उनके घर में धन और सुख-शांति नहीं टिकेगी।”
आधुनिक दृष्टिकोण और समाज की भूमिका
भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा:
“हे देवी! आज के समय में, समाज को इन नियमों को समझने और उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पालन करने की आवश्यकता है। मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे अपवित्रता के बजाय सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाना चाहिए।”
माता लक्ष्मी का वचन
माता लक्ष्मी ने कहा:
“हे प्रभु! आपने जो ज्ञान दिया है, वह स्त्रियों और मानव जाति के कल्याण के लिए अत्यंत उपयोगी है। मैं वचन देती हूँ कि जो स्त्रियाँ मासिक धर्म के दौरान शास्त्रों के नियमों का पालन करेंगी, उनके घर में मेरा वास होगा।”
इस कथा का उद्देश्य मासिक धर्म के पौराणिक, धार्मिक, और सामाजिक पहलुओं को समझाना है। यह न केवल स्त्रियों के सम्मान का प्रतीक है, बल्कि उनके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए भी आवश्यक है।
“मासिक धर्म एक शारीरिक प्रक्रिया से अधिक है। यह प्रकृति और सृष्टि के बीच संतुलन बनाए रखने का एक साधन है। आइए, इसे सम्मान और स्वीकृति के साथ अपनाएँ।”