सिद्धिविनायक मंदिर से जुड़ी ये अनसुनी बातें जानते हैं आप

सिद्धिविनायक मंदिर से जुड़ी ये अनसुनी बातें जानते हैं आप

सिद्धिविनायक, भगवान गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है, जिसमें उनकी सूंड दाईं और मुडी होती है, जानकारी के अनुसार गणेश की ऐसी प्रतिमा वाले मंदिर सिद्धपीठ कहलाते हैं, और इसलिए उन्हें सिद्धिविनायक मंदिर की संज्ञा दी जाती है।

माना जाता है सिद्धिविनायक सच्चे मन से मांगी गई भक्तों की मुराद अवश्य पूरी करते हैं।

माना जाता है सिद्धिविनायक सच्चे मन से मांगी गई भक्तों की मुराद अवश्य पूरी करते हैं।

मंदिर के बारे में बताया जाता है कि सिद्धिविनायक मंदिर की मूल संरचना पहले काफी छोटी थी।

मंदिर की प्रारंभिक संरचना सिर्फ ईटों की बनी हुई थी, जिसका गुंबद आकार का शिखर भी था। बाद में इस मंदिर का पुननिर्माण कर आकार को बढ़ाया गया।

गणपति बप्पा के सिद्धिविनायक मंदिर का निर्माण 19 नवंबर 1801 को एक लक्ष्मण विथु पाटिल नाम के एक स्थानीय ठेकेदार द्वारा किया गया था।

बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि इस मंदिर के निर्माण में लगने वाली धनराशि एक कृषक महिला ने दी थी, कहा जाता है कि उस महिला के कोई संतान नहीं थी, उस महिला ने बप्पा के मंदिर के निर्माण के लिए मदद करने की इच्छा जताई थी।

वह चाहती थी कि मंदिर में आकर भगवान के आर्शीवाद पाकर कोई महिला बांझ न रहे, सबको संतान प्राप्ति हो।

इस मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर के द्वार हर धर्म के लोगों के लिए खुले रहते हैं यहां किसी तरह की कोई मनाही नहीं है।

सिद्धि विनायक मंदिर में मंगलवार को होने वाली आरती बहुत प्रसिद्ध है जिसमें श्रद्धालुओं की लाइन 2 किलोमीटर तक लंबी होती है।

गणेश जी की मूर्ति काले पत्थर से बनाई गई है जिसकी सूंड दाई तरफ है। यहां भगवान गणेश अपनी दोनों पत्नी रिद्धि और सिद्धि के साथ विराजमान हैं।

प्रतिमाएं देखने में काफी आकर्षक लगती हैं। मंदिर के दर्शन शुभ फलदायी माने गए हैं।

सिद्धिविनायक को नवसाचा गणपति या नवसाला पावणारा गणपति के नाम से भी बुलाते हैं। दरअसल बप्पा को मराठी भाषा में इस नाम से पुकारते हैं जिसका अर्थ होता है कि जब भी कोई भक्त सिद्धिविनायक की सच्चे मन से प्रार्थना करता है तो बप्पा उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं।