आज हम बात करेंगे कि मंदिर में रखा हुआ लौटा जल क्यों इतना महत्त्वपूर्ण है और उसे किस सही तरीके से उपयोग में लाना चाहिए साथ ही हम यह भी जानेंगे कि मंदिर में लौटा किस धातु का होना चाहिए क्या पीतल तांबा या कुछ और कई लोग इस बारे में अनजाने में गलतियां कर देते हैं और बाद में उन्हें पछताना पड़ता है दोस्तों वीडियो को लाइक करके कमेंट बॉक्स में लिखें माता लक्ष्मी जी आपका हमारे घर में स्वागत है, दोस्तों इसके साथ ही धर्म कथाएं चैनल को भी सब्सक्राइब कीजिए
हमारे जीवन में पूजा, पूजा घर और धार्मिक क्रियाएँ न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण होती हैं, बल्कि यह हमारे घर की सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा को भी प्रभावित करती हैं। हिंदू धर्म में पूजा के दौरान कुछ विशेष विधियों का पालन करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण वस्तु है लोटा यानी जल पात्र और उसका उपयोग। पूजा घर में रखा लोटा जल न केवल धार्मिक कार्यों के लिए आवश्यक होता है, बल्कि यह हमारी जीवनशक्ति, समृद्धि और मानसिक शांति से भी जुड़ा होता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूजा घर में लोटा जल रखने से जुड़े कुछ विशेष नियम और गलतियाँ हैं, जिन्हें जानकर हम अपनी पूजा विधियों को और अधिक प्रभावी बना सकते हैं? पूजा घर में लोटा जल क्यों रखा जाता है, जल का सही उपयोग कैसे किया जाए, और किन गलतियों से बचना चाहिए ताकि लक्ष्मी माता का आशीर्वाद बना रहे।
लोटा जल रखने का महत्व
पूजा घर में लोटा जल क्यों रखा जाता है?
हिंदू धर्म में जल को बहुत पवित्र और अमृत माना गया है। यह जीव-जंतुओं, पौधों और सभी जीवित प्राणियों के लिए जीवनदायिनी है। पूजा घर में लोटा जल रखने का उद्देश्य यह होता है कि इस जल में पूजा और मंत्रों की सकारात्मक ऊर्जा समाहित होती है, जो पूरे घर में फैलती है।
धार्मिक दृष्टिकोण से यह जल देवी-देवताओं के आशीर्वाद को आकर्षित करता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। शास्त्रों के अनुसार, घर के मंदिर में जल रखने से हमारे जीवन के दुख दूर होते हैं और मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह जल पूजा के दौरान देवी-देवताओं के सामने रखा जाता है और पूजा के बाद इसका उपयोग घर में शुद्धता, समृद्धि और शांति लाने के लिए किया जाता है।
जब हम भगवान के सामने जल रखते हैं, तो यह जल हमारे पूरे परिवार के लिए शुभ और पवित्र होता है। यह घर के वातावरण को शुद्ध करता है और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है। पूजा के दौरान मंत्रों और प्रार्थनाओं का प्रभाव इस जल में समाहित होता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। दोस्तों वीडियो को लाइक करके कमेंट बॉक्स में लिखें माता लक्ष्मी जी आपका हमारे घर में स्वागत है, दोस्तों इसके साथ ही धर्म कथाएं चैनल को भी सब्सक्राइब कीजिए
जैसा कि हम जानते हैं, पूजा के समय जल को तांबे, पीतल, चांदी या मिट्टी के पात्र में रखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, तांबे का पात्र सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह जल में ऊर्जा का संचयन करता है और इसे ज्यादा समय तक शुद्ध बनाए रखता है। पीतल का पात्र भी अच्छा होता है, क्योंकि यह घर में सुख और समृद्धि लाने के लिए उपयोगी है।
जब जल को सही पात्र में रखा जाता है, तो यह न केवल पूजा का हिस्सा बनता है, बल्कि घर के लिए भी सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत बनता है।
लोटा जल का उपयोग पूजा के बाद
पूजा के बाद इस जल को विभिन्न कार्यों में उपयोग किया जा सकता है:
- घर में छिड़काव: इस जल का सबसे सामान्य उपयोग घर के अंदर और बाहर छिड़काव करना है। यह घर के वातावरण को शुद्ध करता है और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है।
- पौधों में डालना: यह जल पौधों में डाला जा सकता है, जिससे पौधों की वृद्धि होती है और घर में हरियाली बनी रहती है।
- पीने के लिए: यदि यह जल सही तरीके से रखा गया है, तो इसे परिवार के सदस्य थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पी सकते हैं, जिससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है। जल का प्रभाव बहुत गहरा होता है। यह केवल प्यास बुझाने के लिए नहीं, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है। शुद्ध जल वातावरण को शुद्ध करता है और उसमें सकारात्मकता का संचार करता है। पूजा के दौरान जब यह जल मंत्रों से अभिमंत्रित होता है, तो इसके प्रभाव से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। दोस्तों वीडियो को लाइक करके कमेंट बॉक्स में लिखें माता लक्ष्मी जी आपका हमारे घर में स्वागत है, दोस्तों इसके साथ ही धर्म कथाएं चैनल को भी सब्सक्राइब कीजिए
जल का बिना ध्यान रखा रखना
अगर पूजा घर में लोटा जल रखकर उसे बिना ध्यान दिए छोड़ दिया जाता है, तो यह न केवल शुद्धता की कमी का कारण बनता है, बल्कि इससे नकारात्मक ऊर्जा का संचय भी हो सकता है। पूजा के बाद जल का सही तरीके से उपयोग न करने से लक्ष्मी माता का आशीर्वाद नहीं मिलता और घर में दरिद्रता आ सकती है।
लोटा जल को तुच्छ समझना
कुछ लोग पूजा घर में लोटा जल रखते समय इसको तुच्छ समझकर उसे इधर-उधर रख देते हैं, या फिर उसे बिना पूजा के अन्य कार्यों में इस्तेमाल कर लेते हैं। यह एक बड़ी गलती है, क्योंकि लोटा जल का सही उद्देश्य है देवी-देवताओं की पूजा के लिए, और इसे तुच्छ समझना घर में दरिद्रता का कारण बन सकता है।
जल को अव्यवस्थित तरीके से रखना
पूजा घर में जल को अव्यवस्थित तरीके से रखने से भी कई दोष उत्पन्न हो सकते हैं। यह जल न केवल घर की ऊर्जा को अव्यवस्थित करता है, बल्कि पूजा में भी विघ्न डालता है। जल को हमेशा एक खास स्थान पर रखना चाहिए और उसे नियमित रूप से बदलते रहना चाहिए।
जल छिड़कने का सही समय
जल छिड़कने का सही समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। शास्त्रों के अनुसार, सुबह जल्दी उठकर घर के मुख्य द्वार पर जल छिड़कना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। इस समय सूर्य की किरणों के साथ जल छिड़कने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
जल छिड़कते समय लक्ष्मी माता का ध्यान करना
जब आप जल छिड़क रहे हों, तो इस समय लक्ष्मी माता का ध्यान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मन में यह प्रार्थना करें कि लक्ष्मी माता आपके घर में प्रवेश करें और आपके जीवन को समृद्ध करें। यह प्रक्रिया घर के वातावरण को शांत और समृद्ध बनाने में सहायक होती है। पूजा घर में लोटा जल रखने का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह न केवल पूजा की प्रक्रिया का हिस्सा है, बल्कि घर की ऊर्जा को शुद्ध करने और सुख-समृद्धि को बढ़ाने में भी सहायक है। जल का सही तरीके से उपयोग करने से न केवल घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, बल्कि यह लक्ष्मी माता का आशीर्वाद भी प्राप्त करता है। दोस्तों वीडियो को लाइक करके कमेंट बॉक्स में लिखें माता लक्ष्मी जी आपका हमारे घर में स्वागत है, दोस्तों इसके साथ ही धर्म कथाएं चैनल को भी सब्सक्राइब कीजिए इसलिए, पूजा घर में जल रखने से जुड़ी गलतियों से बचते हुए, सही तरीके से जल का उपयोग करना अत्यंत आवश्यक है। यह न केवल हमारे जीवन को शांति और समृद्धि देता है, बल्कि हमारे पूरे परिवार के लिए लाभकारी होता है।
पूजा घर में लोटा रखना एक सामान्य और महत्वपूर्ण धार्मिक प्रथा है। पूजा में जल रखने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और घर में शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। लेकिन यदि लोटा गलत धातु का हो, तो यह जल के प्रभाव को घटा सकता है।
लोटा के धातु का चुनाव वास्तु शास्त्र और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित होता है। हर धातु का अपना विशेष प्रभाव होता है। उदाहरण के लिए, तांबे का लोटा सबसे शुभ माना जाता है। यह जल को शुद्ध करता है और उसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचरण करता है। पीतल भी एक अच्छा विकल्प है, जबकि स्टील और प्लास्टिक का लोटा पूजा में उपयोग करने के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते हैं।
- तांबे का लोटा जल को शुद्ध करता है और इसे शक्तिशाली बनाता है।
- पीतल का लोटा भी सकारात्मक ऊर्जा का वाहक होता है।
- स्टील या प्लास्टिक का लोटा जल में नकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकता है, जो पूजा के प्रभाव को कम कर देता है।
यदि आप पूजा घर में स्टील या प्लास्टिक का लोटा रखते हैं, तो यह आपके घर में दरिद्रता का कारण बन सकता है, क्योंकि इन धातुओं को शास्त्रों में नकारात्मक माना जाता है।
दीपक का महत्व पूजा में विशेष होता है। दीपक से निकलने वाली ज्योति न केवल हमारे घर को रोशन करती है, बल्कि यह नकारात्मक ऊर्जा को भी नष्ट करती है और घर में शांति और सुख का वास करती है। दीपक को हमेशा घी या तिल के तेल में जलाना चाहिए, क्योंकि ये दोनों शुद्ध और शुभ माने जाते हैं। लेकिन दीपक के लिए उपयोग की जाने वाली धातु भी बहुत मायने रखती है।
लोहे और स्टील के दीपक पूजा में इस्तेमाल करने से नकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सकता है। यह घर में अशांति और विवाद पैदा कर सकता है।
- कांच के दीपक का उपयोग भी पूजा में करना गलत माना जाता है, क्योंकि कांच का दीपक टूट सकता है और घर में दरिद्रता और अशांति का संकेत होता है।
- मिट्टी या कांसे के दीपक सबसे अच्छे होते हैं। यह दीपक ऊर्जा को सकारात्मक रूप से प्रवाहित करते हैं और घर में समृद्धि का वास कराते हैं।
अगर आप पूजा में लोहे, स्टील या कांच के दीपक का प्रयोग करते हैं, तो यह आपकी पूजा को अधूरा बना सकता है और लक्ष्मी माता का आशीर्वाद प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
दीपक की बाती का सही चुनाव भी पूजा के परिणामों पर गहरा असर डालता है। पूजा में दीपक की बाती को सही प्रकार से तैयार करना चाहिए ताकि वह पूरी तरह से जल सके और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो। गलत सामग्री से तैयार की गई बाती पूजा के उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाती और घर में नकारात्मकता फैल सकती है।
- कच्चा कलावा या सूत की बाती जलाने से दीपक का जलना सही नहीं होता और यह पूजा में विघ्न डालता है।
- रुई की बाती का उपयोग भी गलत माना जाता है, क्योंकि यह पूरी तरह से जलने में सक्षम नहीं होती और पूजा के दौरान अधूरी जलती है।
- ताजा या शुद्ध सूत की बाती सबसे उत्तम मानी जाती है। यह दीपक को ठीक से जलाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
यदि आप गलत बाती का इस्तेमाल करते हैं, तो इससे दीपक सही तरीके से नहीं जल पाता और घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
पूजा घर की सफाई में लापरवाही रखना घर में दरिद्रता का कारण बन सकता है। पूजा घर को हमेशा शुद्ध और साफ रखना चाहिए, क्योंकि गंदगी और अव्यवस्था से नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पूजा करने का सही समय भी महत्वपूर्ण है। यदि आप पूजा के समय का उल्लंघन करते हैं, जैसे सुबह जल्दी नहीं उठते या शाम को देर रात पूजा करते हैं, तो इसका असर आपके जीवन पर हो सकता है। पूजा का स्थान भी शुद्ध और शांत होना चाहिए।
मंत्रों का सही उच्चारण और उच्चारण के समय ध्वनि का प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। गलत मंत्र उच्चारण से पूजा का प्रभाव कम हो सकता है और लक्ष्मी माता का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता।
यदि आप पूजा घर में गलत सामग्री या विधि का उपयोग करते हैं, तो यह आपकी मानसिक शांति को प्रभावित कर सकता है। पूजा के दौरान नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो मानसिक तनाव और अशांति का कारण बन सकता है।
गलत पूजा विधियाँ और सामग्री का चयन करने से घर में आर्थिक संकट आ सकता है। पूजा में सही तरीके से ध्यान और समर्पण न करने से लक्ष्मी माता का आशीर्वाद नहीं मिलता, जिससे आर्थिक तंगी और दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता है।
गलत पूजा विधियाँ न केवल आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न करती हैं, बल्कि यह परिवार में कलह और विवाद भी पैदा कर सकती हैं। पूजा का सही तरीके से पालन न करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे पारिवारिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है।
दीपक जलाने का सबसे पहला और प्रमुख लाभ अंधकार का निवारण है। अंधकार को शारीरिक और मानसिक दृष्टिकोण से समझें तो यह जीवन में अवसाद, अशांति, और नकारात्मकता को दर्शाता है। दीपक के प्रकाश से घर के अंधेरे को समाप्त किया जाता है, जिससे घर में शांति और सकारात्मकता का संचार होता है। दीपक का प्रकाश न केवल शारीरिक अंधकार को दूर करता है, बल्कि मानसिक अंधकार, जैसे चिंता, भय, और तनाव को भी समाप्त करता है।
दीपक का जलना शुभ संकेत होता है और यह सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। इसके साथ ही, यह वातावरण को शुद्ध करने में भी मदद करता है, जिससे घर में सुख और समृद्धि का वास होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी दीपक जलाने के लाभ हैं। दीपक जलाने से वातावरण में नकारात्मक आयनों का स्तर कम होता है और सकारात्मक आयनों का स्तर बढ़ता है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।
घी या तिल के तेल से जलने वाले दीपक वातावरण में ऑज़ोन और अल्ट्रावायलेट विकिरण का उत्पादन करते हैं, जो हवा में मौजूद बैक्टीरिया और विषाणुओं को मारते हैं, जिससे वायु शुद्ध होती है। इसके अलावा, दीपक जलाने से वायु में नीगेटिव आयन का संतुलन होता है, जो घर में ताजगी और ऊर्जा का संचार करता है। इससे मस्तिष्क को शांति मिलती है और मानसिक स्थिति में सुधार होता है।
दीपक जलाने से घर में लक्ष्मी माता का वास माना जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, दीपक जलाना एक प्रकार से देवताओं की आराधना और उनके प्रति सम्मान व्यक्त करना है। दीपक का प्रकाश घर में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य को आकर्षित करता है।
लक्ष्मी माता की पूजा के दौरान दीप जलाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है क्योंकि यह घर के प्रत्येक कोने में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करता है और दरिद्रता, असफलता और दुर्भाग्य को दूर करता है।
दीपक जलाने से न केवल मानसिक और शारीरिक स्थिति में सुधार होता है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है। दीपक से निकलने वाली हल्की गर्मी और प्रकाश, घर के वातावरण को शुद्ध करते हैं। इसके अलावा, यह घर में एक तरह की सकारात्मक और शुद्ध ऊर्जा का संचार करता है, जो बीमारी से राहत दिलाने में सहायक हो सकती है।
विशेषकर जब किसी सदस्य को ज्वर या किसी अन्य बीमारी हो, तो दीपक जलाना उसे मानसिक और शारीरिक रूप से राहत देने में मदद कर सकता है।
दीपक जलाने से घर में शुभ शक्तियों का वास होता है। दीपक का उजाला न केवल घर को रोशन करता है, बल्कि यह वातावरण को भी पवित्र बनाता है, जिससे घर में अच्छे विचार और कार्यों का वातावरण बनता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दीपक जलाने से घर में देवता और शुभ शक्तियाँ सक्रिय हो जाती हैं, जो परिवार के हर सदस्य के जीवन में समृद्धि और आशीर्वाद का वास कराती हैं।
दीपक का सही प्रकार से जलना घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करता है, जिससे घर के सभी सदस्य मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।
जल जीवन का अभिन्न हिस्सा है, और शुद्ध जल का उपयोग हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। पूजा विधियों में शुद्ध जल का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि यह न केवल शारीरिक सफाई के लिए, बल्कि मानसिक शुद्धता के लिए भी आवश्यक है। जल का शुद्ध होना यह सुनिश्चित करता है कि हमारे घर में समृद्धि और सुख का वास हो।
सभी प्रकार के पूजन कार्यों में गंगाजल का विशेष महत्व है। गंगाजल को शुद्धता, पवित्रता और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। इसे घर में छिड़कने से घर की सारी नकारात्मकता समाप्त हो जाती है और घर में शांति का वातावरण बनता है।
गंगाजल को घर के प्रत्येक कोने में छिड़कने से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। विशेष रूप से, यह वास्तु दोष और पितृ दोष को दूर करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। घर में नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने के लिए गंगाजल का छिड़काव एक सरल और प्रभावी तरीका है।
गंगाजल का प्रयोग मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ, और धन-धान्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसे घर के मुख्य द्वार पर छिड़कने से घर में लक्ष्मी का वास होता है।
जल छिड़कने का सबसे शुभ समय सूर्योदय से पहले होता है। यह समय वातावरण को शुद्ध करने और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। सूर्योदय से पहले, वातावरण में शांति और ठंडक होती है, जो जल को प्रभावी रूप से काम करने में मदद करती है।
इसके अलावा, यह समय मानसिक शांति के लिए भी उपयुक्त है, क्योंकि इस समय वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का स्तर न्यूनतम होता है। सूर्योदय से पहले जल छिड़कने से घर में समृद्धि और शांति का वास होता है।
जल छिड़कने का उद्देश्य मुख्य रूप से घर में वास्तु दोष, पितृ दोष, और तंत्र-मंत्र के प्रभाव को समाप्त करना होता है।
- वास्तु दोष: यदि घर में वास्तु दोष हो, तो जल छिड़कने से नकारात्मक ऊर्जा का निवारण होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
- पितृ दोष: पितृ दोष के कारण परिवार में संकट और समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। गंगाजल या शुद्ध जल छिड़कने से यह दोष समाप्त होता है।
- तंत्र-मंत्र प्रभाव: घर में किसी प्रकार के तंत्र-मंत्र के प्रभाव से बचने के लिए भी जल का छिड़काव किया जाता है, जिससे घर में शांति और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
हिंदू धर्म में जल को शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। पूजा और धार्मिक क्रियाओं में जल का महत्वपूर्ण स्थान है। विशेष रूप से, जल को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। प्रसाद का अर्थ होता है वह आशीर्वाद या उपहार जो देवता की पूजा के बाद भक्तों को प्राप्त होता है। जल को प्रसाद के रूप में स्वीकार करने से मनुष्य की आत्मा पवित्र होती है और उसकी सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं।
विशेष रूप से गंगाजल को बहुत पवित्र माना जाता है। इसे घर में रखने से न केवल घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है, बल्कि यह मानसिक शांति भी प्रदान करता है। इसके अलावा, यह घर के प्रत्येक सदस्य के जीवन में सुख, समृद्धि और आशीर्वाद लाने में सहायक होता है।
जल को सकारात्मक ऊर्जा का संचय करने का एक माध्यम भी माना जाता है। जब जल का सही तरीके से उपयोग किया जाता है, तो यह घर में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है। गंगाजल, तुलसी का पानी, या वास्तु जल घर में ऊर्जा के प्रवाह को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
विशेष रूप से, जल को घर के मुख्य द्वार, पूजा स्थल, और पूजा करते समय छिड़कने से घर में शांति और सकारात्मकता का वास होता है। जल को एक प्रकार से ऊर्जा संचायक माना जाता है जो न केवल भौतिक शुद्धता बल्कि मानसिक शांति भी प्रदान करता है।
जल का उपयोग केवल पूजा में ही नहीं, बल्कि प्रकृति के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण है। पौधों में जल डालने से न केवल उनकी वृद्धि होती है, बल्कि यह जीवन के निरंतरता और संतुलन का प्रतीक भी है। पौधों में जल डालने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। जल का यह उपयोग न केवल घर को हरा-भरा बनाता है, बल्कि घर के वातावरण में ताजगी और खुशहाली का संचार भी करता है।
धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, जल डालने से प्रकृति के प्रति सम्मान व्यक्त होता है और यह व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है। विशेष रूप से, तुलसी के पौधे में जल डालना शुभ माना जाता है, क्योंकि तुलसी को देवताओं का प्रिय माना जाता है और यह स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है।
जल का एक अन्य महत्वपूर्ण उपयोग घर के अंदर छिड़कने का है। यह न केवल घर को शुद्ध करता है बल्कि वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। विशेष रूप से, गंगाजल या शुद्ध जल का प्रयोग घर के प्रत्येक कोने में छिड़कने से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
जल को मुख्य द्वार, पूजा स्थल, और कमरों में छिड़कने से घर में शांति और समृद्धि का वास होता है। यह विशेष रूप से वास्तु दोषों को समाप्त करने में सहायक होता है। जल का यह उपयोग घर के सदस्यों को मानसिक शांति, अच्छा स्वास्थ्य और सकारात्मक विचार प्रदान करता है।
रसोई में जल का उपयोग खाना बनाने और रसोई को शुद्ध रखने के लिए किया जाता है। रसोई में जल का शुद्ध रूप से उपयोग न केवल शारीरिक भोजन बल्कि आध्यात्मिक आहार का भी प्रतीक है। जल का सही प्रयोग रसोई में मानसिक शांति और अच्छे स्वास्थ्य का संकेत है। इसके अलावा, रसोई में जल डालने से घर में समृद्धि का वास होता है और खाद्य सामग्री की पवित्रता बनी रहती है।
धार्मिक दृष्टिकोण से रसोई को पूजा स्थान की तरह पवित्र माना जाता है, और वहां जल का सही उपयोग शुद्धता और आशीर्वाद का संकेत है।
जल का नियमित रूप से घर में छिड़काव करने से वास्तु दोष का निवारण होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, जल न केवल घर को शुद्ध करता है बल्कि घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी बढ़ाता है। घर के मुख्य द्वार पर गंगाजल या शुद्ध जल का छिड़काव करने से घर में सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक वातावरण बनता है। यह घर में लक्ष्मी का वास और दरिद्रता का नाश करता है।
जल का नियमित प्रयोग पितृ दोष को भी समाप्त करने में सहायक होता है। यदि किसी परिवार में कोई पितृ दोष है, तो गंगाजल का छिड़काव और विशेष पूजा विधियों के माध्यम से इस दोष को दूर किया जा सकता है। जल को घर के मुख्य स्थानों पर छिड़कने से पितृ दोष का निवारण होता है और घर में शांति और समृद्धि का वास होता है।
अगर किसी घर में तंत्र-मंत्र या नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव हो, तो जल का नियमित प्रयोग इस प्रभाव को समाप्त करने में सहायक होता है। जल का छिड़काव घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं। गंगाजल या शुद्ध जल का छिड़काव विशेष रूप से तंत्र-मंत्र के प्रभाव को समाप्त करने में सहायक होता है।
दीपक जलाना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह घर के वातावरण को शुद्ध करने और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के लिए भी आवश्यक है। दीपक का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि गलत दीपक का उपयोग न केवल अपशकुन का कारण बन सकता है, बल्कि यह घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश भी करवा सकता है।
पीतल, मिट्टी और तांबे के दीपक का चुनाव धार्मिक दृष्टिकोण से शुभ माना जाता है। इन धातुओं से बने दीपक शुद्धता और ऊर्जा के संवाहक होते हैं। इनसे जलने वाली ज्योति घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। विशेष रूप से, मिट्टी का दीपक मिट्टी से जुड़ी ऊर्जा को घर में लाता है और यह वातावरण में शांति और समृद्धि का संकेत होता है।
धार्मिक दृष्टिकोण से कांच और लोहे के दीपक का उपयोग न करना चाहिए। ये सामग्री नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती हैं और दीपक का प्रकाश भी सही तरीके से नहीं फैलता। लोहे के दीपक से जलने वाली ज्योति अधिक समय तक नहीं जलती और इसका प्रभाव भी नकारात्मक होता है। इसके अलावा, कांच के दीपक से बचना चाहिए, क्योंकि यह वास्तु दोष को बढ़ा सकते हैं और घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।
रुई और कच्चा कलावा वाला दीपक सर्वोत्तम होता है। रुई से बनी बत्तियां जलाने से दीपक का प्रकाश अधिक स्थिर और सशक्त होता है। साथ ही, कच्चा कलावा (कच्ची धागे से बना कलावा) भी शुभ माना जाता है क्योंकि यह शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।