Mahakumbh 2025 अघोरी साधु को पुलिस ने पकड़ा, फिर हुआ चमत्कार | Aghori Sadhu Prayagraj’s Sangam Ghat

प्रयागराज के संगम घाट पर महाकुंभ की धूम थी। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर श्रद्धालुओं का मेला लगा था। हर दिशा से भजन-कीर्तन और मंत्रोच्चार की आवाजें गूंज रही थीं। घाट पर भीड़ के बीच एक वृद्ध महिला, पार्वती, आँखों में आँसू लिए गंगा के शांत जल को निहार रही थी। उसकी बेटी, गीता, पिछले तीन दिनों से लापता थी। “माँ गंगा, मेरी गीता को मुझसे मत छीनो,” पार्वती बार-बार प्रार्थना करती। घाट पर खड़े लोग उसकी करुण पुकार से व्यथित हो रहे थे, लेकिन कोई भी मदद करने को आगे नहीं आया। यह दृश्य किसी की भी आत्मा को झकझोरने के लिए काफी था।
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उसी रात, जब चाँदनी गंगा के जल पर बिखरी थी, घाट पर अचानक हलचल मच गई। अंधेरे में एक लंबी कद-काठी वाला अघोरी साधु दिखा। उसकी आँखें गहरी लाल थीं, जैसे उनमें अग्नि समाई हो। गले में नरमुंडों की माला और त्रिशूल हाथ में लिए, वह घाट के एक कोने में बैठ गया। उसकी उपस्थिति ने घाट पर मौजूद लोगों को भयभीत कर दिया। साधु ने अपनी आँखें बंद कीं और रहस्यमय मंत्रोच्चार शुरू कर दिया। तभी, गंगा का शांत पानी अचानक उफान मारने लगा। दूर से गीता जैसी दिखने वाली एक आकृति गंगा की लहरों में दिखाई दी, और फिर गायब हो गई।
अगले दिन, गीता की माँ घाट पर अपने पति रमेश के साथ गई। “कोई मेरी गीता को लौटा दो!” पार्वती की करुण पुकार सुनकर वहां मौजूद लोग दुखी हो गए। तभी एक बुजुर्ग संत ने पास आकर कहा, “कल रात मैंने तुम्हारी बेटी को उस अघोरी साधु के पास जाते देखा था। उसकी शक्तियाँ अकल्पनीय हैं। कोई भी उसकी ओर जाने की हिम्मत नहीं करता।” यह सुनते ही रमेश ने अघोरी के पास जाने की ठानी, लेकिन जैसे ही वह उसके पास पहुँचा, एक अदृश्य शक्ति ने उसे दूर फेंक दिया। घाट पर मौजूद लोग यह सब देखकर सन्न रह गए।
उसी रात, वीरेंद्र राणा नाम का एक साहसी पुलिस अधिकारी, घाट पर तैनात किया गया। वीरेंद्र ने साधु का सामना किया और उससे गीता के बारे में पूछा। साधु ने ठंडी हँसी के साथ कहा, “वह अब मेरी साधना का हिस्सा है। उसकी आत्मा अब मेरी शक्ति को पूरा करेगी।” वीरेंद्र ने साधु को गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन साधु ने अपना त्रिशूल उठाकर जोर से धरती पर मारा। गंगा का पानी फिर से उफान मारने लगा। घाट पर उपस्थित महिलाएं अचानक बेहोश होकर गिर पड़ीं। साधु ने अपनी आँखें बंद कीं और एक तेज रोशनी के साथ गायब हो गया।
जब वीरेंद्र ने साधु की शक्ति का स्रोत जानने की कोशिश की, तो उसे पता चला कि यह सब एक प्राचीन पांडुलिपि से जुड़ा है। संत ने बताया कि वह अघोरी “महाकाल यज्ञ” की साधना कर रहा है, जिसमें सात पवित्र आत्माओं का बलिदान देना होता है। गीता और अन्य महिलाएं उसी यज्ञ के लिए चुनी गई थीं। लेकिन यज्ञ को रोकने का एक उपाय है—साधु का त्रिशूल छीनकर उसे गंगा की गहराइयों में फेंकना।

क्या वीरेंद्र साधु को रोकने में कामयाब होगा? क्या गीता और अन्य महिलाओं को बचाया जा सकेगा? इस रहस्य का समाधान अगले एपिसोड में होगा।

अगले एपिसोड का नाम: त्रिशूल का रहस्य और महाकाल यज्ञ
यह कहानी आपके दिल को छूने और रोमांचित करने के साथ आपको अगले अध्याय का इंतजार करने पर मजबूर कर देगी।

गंगा के शांत जल पर सुबह की पहली किरण पड़ रही थी। घाट पर लोग स्नान कर रहे थे, लेकिन माहौल में डर और बेचैनी थी। वीरेंद्र राणा, जो अपने साहस और निडरता के लिए जाना जाता था, साधु के रहस्यमय disappearance से परेशान था। गीता की माँ पार्वती, जो पिछले कुछ दिनों से अपनी बेटी के लौटने की आस में गंगा तट पर डेरा डाले बैठी थी, वीरेंद्र के पास आकर गिड़गिड़ाई। “मेरी गीता को बचा लो, इंस्पेक्टर साहब। वो सिर्फ मेरी बेटी नहीं, बल्कि मेरे जीने का सहारा है।” उसकी यह पुकार हर किसी के दिल को झकझोर रही थी। वीरेंद्र ने उसे दिलासा देते हुए कहा, “माँ, मैं आपकी बेटी को वापस लाने की पूरी कोशिश करूंगा। आप मुझ पर भरोसा रखिए।”

रात होते ही घाट पर फिर अजीब घटनाएं शुरू हो गईं। गंगा का पानी लाल हो गया, और उसकी लहरों से मानो किसी की चीखें सुनाई दे रही थीं। घाट पर मौजूद लोग सहम गए। वीरेंद्र ने घाट के कोने में कुछ अजीबो-गरीब चिह्न देखे। यह साधारण निशान नहीं थे, बल्कि कुछ प्राचीन तंत्र-मंत्र का संकेत दे रहे थे। तभी एक बूढ़ा संत, जो सालों से गंगा के किनारे तपस्या कर रहा था, वीरेंद्र के पास आया। “इंस्पेक्टर साहब, ये निशान साधु के महाकाल यज्ञ के प्रारंभ का संकेत हैं। अगर इसे रोका नहीं गया, तो त्रिलोक में अराजकता फैल जाएगी।” वीरेंद्र के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं।

उसी रात, गीता की माँ को गंगा के किनारे किसी का छाया-रूप दिखाई दिया। वह चीख पड़ी, “गीता! गीता!” लेकिन छाया तेजी से गंगा की लहरों में विलीन हो गई। पार्वती रोते-रोते बेहोश हो गई। वीरेंद्र ने तुरंत उसे संभाला। यह दृश्य इतना हृदयविदारक था कि वहां मौजूद लोग अपने आंसू नहीं रोक पाए। वीरेंद्र को महसूस हुआ कि समय तेजी से निकल रहा है, और उसे जल्द ही कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।
वीरेंद्र ने घाट के बुजुर्ग संतों से मदद मांगी। उन्होंने बताया कि साधु का त्रिशूल ही उसकी शक्ति का केंद्र है। उसे तोड़ने के लिए विशेष पवित्र जल और मंत्रों की आवश्यकता है। संतों ने वीरेंद्र को बताया कि यह पवित्र जल गंगा के सबसे गहरे हिस्से में, एक प्राचीन मंदिर में रखा गया है। वहां पहुंचना साधारण काम नहीं था। वीरेंद्र ने निश्चय किया कि वह इस असंभव मिशन को भी पूरा करेगा।
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तभी घाट पर अचानक से बिजली चमकने लगी। साधु की भयंकर हँसी गूंजने लगी। उसकी छवि गंगा की लहरों पर प्रकट हुई। उसने कहा, “तुम्हारी शक्ति मुझसे मुकाबला नहीं कर सकती। मैं ब्रह्मांड की ऊर्जा का स्वामी हूं।” साधु ने यह कहते ही गंगा के पानी से एक भयानक आकृति को बुलाया। वह आकृति इंसान और पशु का मिश्रण थी, और उसकी आंखों से आग निकल रही थी। उसने पूरे घाट पर दहशत फैला दी।
वीरेंद्र ने संतों से कहा, “मैं उस पवित्र जल को लेकर आऊंगा।” संतों ने चेतावनी दी, “उस मंदिर में जाने के लिए तुम्हें अपनी सबसे बड़ी कमजोरी का सामना करना होगा। वहां प्रवेश करना तुम्हारे धैर्य और विश्वास की परीक्षा होगी।” वीरेंद्र ने निडर होकर कहा, “मैं हर चुनौती का सामना करने को तैयार हूं।”
अगले एपिसोड का रहस्य: क्या वीरेंद्र पवित्र जल हासिल कर पाएगा? उस प्राचीन मंदिर में कौन से खतरनाक रहस्य छिपे हैं? क्या गीता और अन्य महिलाओं को बचाया जा सकेगा? इन सभी सवालों का जवाब अगले भाग में मिलेगा।
यह कहानी दर्शकों को रोमांचित और भयभीत करते हुए अगले अध्याय का बेसब्री से इंतजार करने पर मजबूर कर देगी।
घाट पर सुबह की हल्की धुंध थी। गंगा की लहरें शांत थीं, लेकिन माहौल में बेचैनी महसूस हो रही थी। पार्वती अपनी बेटी गीता की याद में घाट के किनारे बैठी थी। उसका दिल अब तक एक उम्मीद के सहारे धड़क रहा था। “माँ गंगा, मेरी गीता को बचा लो। अगर मैंने कोई गलती की है तो उसकी सज़ा मुझे दो, पर मेरी बच्ची को लौटा दो,” वह रोते हुए गंगा की ओर प्रार्थना कर रही थी। आसपास खड़े लोग उसकी यह दशा देखकर भीतर तक हिल गए। वीरेंद्र राणा, जो गीता को ढूंढने की कोशिश में दिन-रात लगा था, उसे देखकर अपनी आँखों में आंसू रोक नहीं पाया।
उसी रात, वीरेंद्र को गंगा के पास एक रहस्यमयी रोशनी दिखी। रोशनी धीरे-धीरे बढ़ रही थी, और उसमें से एक काली आकृति प्रकट हुई। वह आकृति साधु के त्रिशूल की थी। त्रिशूल हवा में चमक रहा था, और उसके चारों ओर लाल-नीली ऊर्जा की लहरें थीं। तभी एक भयानक चीख घाट पर गूंज उठी। घाट पर मौजूद हर कोई डर के मारे भागने लगा। वीरेंद्र को लगा कि साधु का अगला कदम शुरू हो चुका है। संत ने वीरेंद्र से कहा, “यह साधु का संकेत है कि महाकाल यज्ञ के लिए वह तैयार है। हमें तुरंत कुछ करना होगा।
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वीरेंद्र ने संतों और अपनी टीम के साथ उस मंदिर की खोज शुरू की, जहाँ से पवित्र जल लाना था। यह मंदिर गंगा के बीचों-बीच, एक गुफा में था। वहां पहुँचने के लिए वीरेंद्र को नाव से जाना पड़ा। मंदिर की ओर जाते समय, उसे गीता की माँ की आवाज़ याद आई, “मेरी गीता को बचा लो, साहब।” इस वाक्य ने उसे और अधिक मजबूत बना दिया। गुफा में प्रवेश करते ही वीरेंद्र को गीता की चीखें सुनाई दीं। यह सुनकर उसका दिल भर आया। उसने खुद से वादा किया कि चाहे कुछ भी हो, वह गीता और अन्य महिलाओं को बचाकर ही लौटेगा।
मंदिर के अंदर वीरेंद्र ने एक रहस्यमय मूर्ति देखी। मूर्ति के हाथों में वही त्रिशूल था, जो साधु के पास था। संत ने बताया, “यह त्रिशूल केवल साधु का नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है। इसे पवित्र जल से कमजोर किया जा सकता है।” तभी मंदिर के अंदर एक अद्भुत घटना घटी। मूर्ति की आँखों से रोशनी निकली, और गीता का चेहरा उसमें दिखाई दिया। गीता ने दर्द भरी आवाज में कहा, “साहब, मुझे बचा लो। यह साधु हमें अपने यज्ञ के लिए बलिदान देना चाहता है।” वीरेंद्र का खून खौल उठा।
जब वीरेंद्र ने पवित्र जल लेने की कोशिश की, तो गुफा में भयानक भूकंप आ गया। मूर्ति के चारों ओर प्रेतों का झुंड प्रकट हुआ, जो जल को छूने से रोक रहा था। वीरेंद्र ने संत की मदद से मंत्रोच्चार किया, लेकिन जल तक पहुँचना आसान नहीं था। तभी साधु की भयंकर हँसी गूंज उठी। उसकी आवाज़ गुफा की दीवारों से टकराते हुए आई, “तुम्हारी हिम्मत की दाद देता हूँ, लेकिन तुम मुझे नहीं हरा सकते। महाकाल यज्ञ पूरा होगा और मेरी शक्तियां इस संसार को नियंत्रित करेंगी।”
वीरेंद्र ने अपनी टीम से कहा, “यह केवल शुरुआत है। हमें इस साधु की शक्तियों को तोड़ने के लिए कुछ और चाहिए।”
अगला एपिसोड का रहस्य: क्या वीरेंद्र पवित्र जल को लेकर लौट पाएगा? साधु के महाकाल यज्ञ को रोकने के लिए कौन सा बलिदान आवश्यक होगा? और गीता का क्या होगा?
गंगा का जल शांत था, लेकिन उस शांति के पीछे असीम भय छिपा हुआ था। घाट पर पार्वती अपनी बेटी गीता के लौटने की आस में बैठी थी। उसकी आँखों से आँसुओं की धार बह रही थी। “क्या मेरा हर सपना टूट जाएगा? क्या मेरी गीता अब कभी वापस नहीं आएगी?” वह बड़बड़ा रही थी। पास खड़े लोग उसकी इस स्थिति को देख कर स्तब्ध थे। वीरेंद्र, जो अभी भी मंदिर से पवित्र जल लाने की कोशिश में था, पार्वती की पुकार को याद कर रहा था। उसके मन में एक ही सवाल गूंज रहा था, “क्या मैं गीता और अन्य महिलाओं को बचा पाऊंगा?”

मंदिर के अंदर वीरेंद्र और उसकी टीम ने पवित्र जल को ढूंढ लिया था, लेकिन उसे हासिल करना आसान नहीं था। जल के चारों ओर लाल रंग की चमक थी, और गुफा की दीवारों से विचित्र प्रेत झांक रहे थे। अचानक, गुफा के अंदर एक ज़ोरदार गूँज हुई। साधु की आवाज गूंजने लगी, “इस जल को छूने का प्रयास किया, तो यह आखिरी गलती होगी।” तभी प्रेतों का झुंड वीरेंद्र की ओर बढ़ा। उनकी आंखें खून जैसी लाल थीं, और उनके शरीर से अजीब धुएं की लहरें निकल रही थीं। वीरेंद्र के साथियों ने डरकर पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन वीरेंद्र ने उन्हें रोकते हुए कहा, “अगर हम अब पीछे हट गए, तो गीता और अन्य महिलाओं की जान खतरे में पड़ जाएगी।”

वीरेंद्र ने अपनी जान पर खेलते हुए जल को छूने की कोशिश की। तभी प्रेतों में से एक ने उस पर हमला किया। वीरेंद्र के कंधे पर गहरी चोट आई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने संत द्वारा सिखाए गए मंत्रों का उच्चारण शुरू किया। “ॐ महाकालाय नमः।” मंत्रों की शक्ति से प्रेत पीछे हटने लगे। वीरेंद्र ने पवित्र जल को अपने हाथों में ले लिया, लेकिन तभी गुफा के अंदर गीता की चीख गूंज उठी। उसकी आवाज़ इतनी दर्दनाक थी कि वीरेंद्र और उसकी टीम के सदस्य रो पड़े। गीता की चीखों ने हर किसी का दिल दहला दिया।

पवित्र जल को लेकर जैसे ही वीरेंद्र गुफा से बाहर निकला, साधु की एक विशाल छवि गंगा के ऊपर प्रकट हुई। उसकी आंखें आग की तरह जल रही थीं, और उसने जोर से कहा, “तुमने मेरे मार्ग में बाधा डालने की कोशिश की है, लेकिन तुम्हें पता नहीं है कि मैंने महाकाल यज्ञ की प्रक्रिया शुरू कर दी है। गंगा का लाल जल इसका प्रमाण है।” वीरेंद्र ने देखा कि घाट पर मौजूद महिलाएं धीरे-धीरे गंगा की ओर खिंच रही थीं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें नियंत्रित कर रही हो। वीरेंद्र ने संत की ओर देखा और पूछा, “अब क्या करना होगा?”

संत ने गंभीर स्वर में कहा, “साधु का त्रिशूल ही उसकी शक्ति का केंद्र है। यदि हम त्रिशूल को पवित्र जल से स्पर्श कर दें, तो उसकी शक्तियां नष्ट हो जाएंगी। लेकिन यह काम असंभव है। साधु ने अपने त्रिशूल के चारों ओर एक ऊर्जा घेरा बना रखा है, जिसे तोड़ना लगभग नामुमकिन है।”

वीरेंद्र ने संत के साथ योजना बनाई। वह साधु के त्रिशूल तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास करने को तैयार था। साधु की छवि ने उसे चेतावनी दी, “यदि तुमने मेरी शक्तियों को चुनौती दी, तो इसका परिणाम केवल विनाश होगा। सोच लो, वीरेंद्र। मैं त्रिलोक का स्वामी बनने वाला हूँ।”

वीरेंद्र ने संत की ओर देखा और कहा, “अब यह साधु को रोकने की आखिरी कोशिश है। अगर हम असफल हुए, तो यह दुनिया विनाश की ओर बढ़ जाएगी।”

अगला एपिसोड का रहस्य: क्या वीरेंद्र साधु के त्रिशूल को छू पाएगा? क्या महाकाल यज्ञ को रोका जा सकेगा? या साधु त्रिलोक का स्वामी बन जाएगा?

गंगा के शांत तट पर सन्नाटा पसरा हुआ था। घाट के पास पार्वती अपनी बेटी गीता के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसकी आँखें आंसुओं से भरी थीं, और उसके हाथ काँप रहे थे। “माँ गंगा, मैं कुछ नहीं मांगती, बस मेरी गीता को मुझे लौटा दो,” वह बड़बड़ा रही थी। पास खड़ा उसका पति रमेश भी उसके आंसू पोछने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों में खुद निराशा झलक रही थी। वहां मौजूद हर व्यक्ति इस मां की वेदना को महसूस कर रहा था। वहीं दूसरी ओर, वीरेंद्र राणा, अपने घायल कंधे के दर्द को नजरअंदाज करते हुए, साधु के त्रिशूल को नष्ट करने के लिए आगे बढ़ रहा था।

वीरेंद्र और उसकी टीम ने घाट पर कदम रखते ही अजीब सी गर्मी महसूस की। गंगा का पानी अब पूरी तरह से लाल हो चुका था। लहरें हिंसक हो रही थीं, जैसे वे किसी अदृश्य शक्ति के इशारे पर चल रही हों। साधु की छवि फिर प्रकट हुई। इस बार उसकी आँखों में जलती हुई आग थी। उसने गरजते हुए कहा, “वीरेंद्र, अगर तुमने मेरे रास्ते में बाधा डालने की कोशिश की, तो यह दुनिया विनाश के गर्त में चली जाएगी। मैं महाकाल यज्ञ पूरा करके त्रिलोक का स्वामी बनूंगा।”

तभी गंगा से एक बड़ा भंवर उठा और उसमें से एक भयानक आकृति प्रकट हुई। यह आकृति प्राचीन दानवों की तरह दिखती थी, जिसकी चार भुजाएँ थीं और चेहरे पर क्रोध की लकीरें थीं। घाट पर मौजूद लोग चीखते-चिल्लाते भागने लगे। वीरेंद्र ने अपनी बंदूक निकाली, लेकिन वह जानता था कि साधारण हथियार से इस अदृश्य शक्ति को हराया नहीं जा सकता।

घाट पर एक और चीख गूंजी। यह गीता की माँ पार्वती की थी। उसने साधु की छवि की ओर इशारा करते हुए कहा, “तुमने मेरी बेटी को छीन लिया, लेकिन मैं तुम्हें उसे यज्ञ में बलिदान नहीं करने दूंगी।” यह सुनकर साधु हँसा और बोला, “तुम्हारी बेटी अब मेरी शक्ति का हिस्सा बनने जा रही है। उसकी आत्मा इतनी शुद्ध है कि मेरे यज्ञ को पूर्ण करेगी।”

यह सुनकर पार्वती वहीं बेहोश हो गई। वीरेंद्र ने उसे उठाकर समझाया, “माँ, मैं आपकी बेटी को बचाने की पूरी कोशिश करूंगा। आप मुझ पर भरोसा रखें।” यह दृश्य इतना भावुक था कि वहां मौजूद हर किसी की आँखें नम हो गईं। वीरेंद्र ने ठान लिया कि चाहे उसकी जान चली जाए, वह गीता और अन्य महिलाओं को बचाएगा।

वीरेंद्र ने संतों के साथ योजना बनाई। संतों ने बताया कि साधु का त्रिशूल उसके चारों ओर एक ऊर्जा घेरा बनाता है। इस घेरे को तोड़ने के लिए पवित्र जल का उपयोग करना होगा। लेकिन जल को त्रिशूल तक पहुंचाने के लिए एक व्यक्ति को अपनी आत्मा को बलिदान करने के लिए तैयार होना होगा।

तभी गंगा के ऊपर साधु की छवि फिर प्रकट हुई। उसने गरजते हुए कहा, “तुम मुझे रोकने की कोशिश कर सकते हो, लेकिन याद रखना, जो कोई मेरे त्रिशूल को छूने की कोशिश करेगा, वह राख बन जाएगा।”

वीरेंद्र ने बिना समय गंवाए पवित्र जल को लेकर आगे बढ़ा। गंगा की लहरें और तेज हो गईं। साधु ने अपने मंत्रों का प्रयोग करना शुरू किया। घाट पर मौजूद लोग चीखते हुए भाग रहे थे। तभी एक भयंकर बिजली कड़की, और साधु का त्रिशूल चमकने लगा।

जब वीरेंद्र ने त्रिशूल पर पवित्र जल छिड़कने की कोशिश की, तो साधु ने एक भयंकर मंत्र पढ़ा। गंगा से एक और आकृति प्रकट हुई, जो साधु की ऊर्जा का हिस्सा थी। यह आकृति वीरेंद्र की ओर बढ़ने लगी। वीरेंद्र ने संत से पूछा, “अब क्या किया जाए?” संत ने कहा, “तुम्हें साधु के मंत्र का तोड़ करना होगा। लेकिन यह काम बहुत खतरनाक है। अगर तुम असफल हुए, तो यह संसार विनाश में डूब जाएगा।”

अगले एपिसोड का रहस्य: क्या वीरेंद्र साधु के मंत्र का तोड़ खोज पाएगा? क्या वह त्रिशूल को नष्ट कर पाएगा? और गीता और अन्य महिलाओं का क्या होगा?
गंगा के किनारे सुबह की लालिमा फैल चुकी थी, लेकिन घाट पर अब भी भय और चिंता का साया मंडरा रहा था। पार्वती गंगा की ओर निहार रही थी। उसकी आँखों से आँसुओं की धार बह रही थी। उसने हाथ जोड़कर कहा, “हे माँ गंगा, मेरी गीता को बचा लो। अगर मेरे जीवन के बदले मेरी बेटी वापस आ सके, तो मैं यह बलिदान देने को तैयार हूँ।” घाट पर उपस्थित लोग उसकी यह पुकार सुनकर भावुक हो गए। वीरेंद्र ने पार्वती के पास जाकर कहा, “माँ, मैं गीता को वापस लाने की हरसंभव कोशिश करूंगा। आप हिम्मत रखिए।” पार्वती की थकी आँखों में वीरेंद्र के शब्दों ने थोड़ी उम्मीद जगा दी।

रात गहराते ही गंगा का पानी और अधिक लाल हो गया। घाट पर एक अजीब सी ऊर्जा महसूस हो रही थी। अचानक एक तेज़ गूँज उठी। साधु की छवि गंगा के पानी से ऊपर उठी। उसकी आँखें अब और भी भयानक थीं। उसने गरजते हुए कहा, “महाकाल यज्ञ अब अपने अंतिम चरण में है। त्रिशूल को छूने की हिम्मत मत करना, वरना पूरा संसार नष्ट हो जाएगा।” तभी घाट पर गीता और अन्य गायब महिलाओं की धुंधली आकृतियाँ दिखने लगीं। वे सभी किसी अदृश्य शक्ति के वश में गंगा की ओर बढ़ रही थीं। यह देखकर घाट पर उपस्थित लोग सहम गए।

गीता की आकृति को देखकर पार्वती फूट-फूट कर रोने लगी। उसने गंगा की ओर भागते हुए कहा, “गीता! मेरी बच्ची, रुक जा! तुम मुझे छोड़कर मत जाओ।” लेकिन गीता ने पलट कर भी नहीं देखा। वह किसी सम्मोहन के कारण गंगा के पानी में धीरे-धीरे उतर रही थी। पार्वती ने गंगा की लहरों में घुसकर उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन एक अदृश्य दीवार ने उसे पीछे फेंक दिया। पार्वती घाट पर गिर पड़ी। “हे भगवान, यह क्या हो रहा है?” वह रोते हुए चिल्ला रही थी। यह दृश्य देखकर वीरेंद्र और उसकी टीम भी स्तब्ध रह गई।
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वीरेंद्र ने संत से पूछा, “अब क्या करना होगा? गीता और अन्य महिलाओं को बचाने का कोई उपाय है?” संत ने कहा, “महाकाल यज्ञ को रोकने का एकमात्र तरीका है साधु के त्रिशूल को पवित्र जल से नष्ट करना। लेकिन यह काम आसान नहीं है। त्रिशूल के पास पहुँचने के लिए हमें साधु के घेरों और उसके राक्षसों से लड़ना होगा।”

वीरेंद्र ने बिना समय गवांए योजना बनाई। उसने अपनी टीम के साथ घाट पर फैले साधु के जाल को काटना शुरू किया। जैसे ही वह त्रिशूल के पास पहुँचा, साधु ने अपनी पूरी शक्ति के साथ गंगा के पानी से एक विशाल राक्षस प्रकट कर दिया। वह राक्षस गंगा के जल से बना था और उसकी आँखों से आग निकल रही थी। उसने वीरेंद्र की टीम पर हमला करना शुरू कर दिया। वीरेंद्र ने अपने साहस का परिचय देते हुए राक्षस का सामना किया।

राक्षस के हमले से घाट पर हर कोई डर गया। लेकिन वीरेंद्र ने पवित्र जल को त्रिशूल की ओर फेंकने का प्रयास किया। तभी साधु की छवि और प्रकट हुई। उसने गर्जना करते हुए कहा, “तुम मुझे नहीं हरा सकते। मैं इस संसार का स्वामी बनूंगा।” लेकिन तभी पवित्र जल त्रिशूल से छू गया। एक तेज़ रोशनी पूरे घाट पर फैल गई। साधु की चीखें गूंजने लगीं। गंगा का लाल पानी फिर से साफ हो गया, और महिलाओं की धुंधली आकृतियाँ गायब हो गईं।

अगला एपिसोड का रहस्य: क्या साधु पूरी तरह नष्ट हो गया, या यह उसकी एक चाल थी? क्या महाकाल यज्ञ सच में खत्म हो गया है, या अब भी कुछ रहस्य बाकी हैं?
गंगा के तट पर सूर्य उग रहा था, लेकिन माहौल में अभी भी भय और उदासी का साया था। पार्वती घाट पर बैठी गंगा की लहरों को निहार रही थी। उसकी आँखें सूख चुकी थीं, और शरीर थकावट से कांप रहा था। “मेरी गीता को बचा लो, माँ गंगा। मेरे जीवन का अब कोई अर्थ नहीं बचा है,” उसने धीमे स्वर में कहा। वीरेंद्र, जो पास खड़ा था, पार्वती की यह दशा देखकर भीतर तक टूट गया। उसने मन ही मन प्रण लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, गीता और अन्य महिलाओं को बचाने के लिए वह अपनी जान भी दांव पर लगा देगा।

रात होते ही गंगा के तट पर फिर से विचित्र घटनाएं शुरू हो गईं। साधु की छवि गंगा के जल के ऊपर प्रकट हुई। उसकी आँखों से खून की लकीरें बह रही थीं, और उसके चारों ओर एक भयानक ऊर्जा मंडरा रही थी। उसने गरजते हुए कहा, “तुमने मेरी साधना में बाधा डालने की हिम्मत की है, वीरेंद्र। अब इसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ। महाकाल यज्ञ अब रुकने वाला नहीं है।”

तभी घाट पर गीता और अन्य महिलाओं की आकृतियां फिर से प्रकट हुईं। वे सभी किसी अदृश्य शक्ति के वश में गंगा की ओर बढ़ रही थीं। इस बार उनकी आँखें पूरी तरह खाली और मृत थीं। लोग डर के मारे भागने लगे। वीरेंद्र ने संत से पूछा, “यह सब कैसे रोका जा सकता है?” संत ने कहा, “महाकाल यज्ञ को रोकने के लिए साधु की आत्मा और त्रिशूल दोनों को नष्ट करना होगा। लेकिन यह काम आसान नहीं है। साधु की आत्मा को केवल ब्रह्मास्त्र मंत्र से बांधा जा सकता है, और वह मंत्र केवल तभी काम करेगा जब त्रिशूल से ऊर्जा नष्ट हो जाए।”

गीता को गंगा की ओर बढ़ते देख पार्वती अपने आप को रोक नहीं पाई। उसने गंगा की ओर दौड़ते हुए चिल्लाया, “गीता, रुक जाओ! मैं तुम्हें इस तरह नहीं खो सकती।” वह गंगा में कूद पड़ी और अपनी बेटी को रोकने की कोशिश करने लगी। लेकिन जैसे ही उसने गीता का हाथ पकड़ा, एक अदृश्य शक्ति ने उसे पीछे फेंक दिया। पार्वती घाट पर गिर पड़ी। “माँ गंगा, मेरी बेटी को बचा लो!” उसकी यह करुण पुकार घाट पर मौजूद हर किसी को रुला गई।

इस दृश्य को देखकर वीरेंद्र का साहस और मजबूत हो गया। उसने संत से कहा, “अब और देरी नहीं हो सकती। हमें यज्ञ को रोकने के लिए आखिरी कदम उठाना होगा।”

वीरेंद्र ने पवित्र जल के आखिरी अंश को त्रिशूल पर फेंक दिया। जैसे ही जल त्रिशूल से छुआ, साधु की चीखों ने पूरा वातावरण हिला दिया। उसकी छवि गंगा के ऊपर से धुंधली होने लगी। लेकिन इससे पहले कि लोग राहत की सांस ले पाते, एक बड़ा रहस्य सामने आया। साधु की आवाज गूंज उठी, “तुमने सोचा कि मुझे हराकर सब खत्म हो गया? नहीं! मेरी आत्मा अभी भी जीवित है। यह यज्ञ अधूरा नहीं रहेगा।”

साधु की आत्मा गंगा के जल में समाने लगी। उसी समय, गंगा के अंदर से एक तेज़ रोशनी निकली और एक प्राचीन मूर्ति प्रकट हुई। संत ने कहा, “यह महाकाल की दिव्य मूर्ति है। इसमें ब्रह्मांडीय ऊर्जा समाई है। यदि साधु की आत्मा इसमें प्रवेश कर गई, तो उसे रोकना असंभव हो जाएगा।”

वीरेंद्र ने बिना सोचे-समझे उस मूर्ति की ओर छलांग लगाई। उसने अपने साहस और मंत्रों का प्रयोग करते हुए साधु की आत्मा को ब्रह्मास्त्र मंत्र के जरिए बांध दिया। एक भयानक विस्फोट हुआ। गंगा का जल फिर से शांत हो गया, और महिलाओं की आकृतियां गायब हो गईं। गीता और अन्य महिलाएं धीरे-धीरे होश में आ गईं। पार्वती ने दौड़कर गीता को गले से लगा लिया। वह खुशी और आंसुओं से भर गई।

साधु की आत्मा पूरी तरह नष्ट हो चुकी थी। लेकिन संत ने चेतावनी दी, “यह त्रिशूल और महाकाल की मूर्ति को गंगा के गहरे जल में छिपाना होगा, ताकि कोई और इसका दुरुपयोग न कर सके। यह शक्ति अमर है, और इसे केवल संतुलन बनाए रखने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए।”

अंतिम रहस्य: वीरेंद्र ने त्रिशूल और मूर्ति को गंगा के गहरे जल में प्रवाहित कर दिया। लेकिन जाते-जाते उसने महसूस किया कि साधु की चेतावनी अब भी उसके कानों में गूंज रही थी: “यह अंत नहीं, एक नई शुरुआत है।”

गंगा का जल फिर से शुद्ध और शांत हो गया। घाट पर भजन-कीर्तन की गूंज सुनाई देने लगी। वीरेंद्र ने महसूस किया कि इस लड़ाई ने न केवल उसे, बल्कि पूरे ब्रह्मांड को संतुलन की अहमियत सिखाई। लेकिन क्या यह वास्तव में अंत था? या यह ब्रह्मांडीय शक्ति का एक नया अध्याय शुरू होने की तैयारी थी?

इस रहस्यमयी यात्रा ने महाकुंभ को एक ऐसा अध्याय बना दिया, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।