
-: जय श्रीराधेकृष्ण :-
-सूर्यसिद्धान्तीय-
-(सूर्य पंचांग रायपुर)
-दिनांक 10 अगस्त 2018
-दिन शुख्रवार
-सूर्योदय 05:27:29
-सूर्यास्त 18:16:00
-दक्षिणायन
-संवत् 2075
-शक् 1940
-ॠतु- वर्षा
-श्रावण मास
-कृष्ण पक्ष
-चतुर्दशो तिथि 06:07:30 परं अमावस्या
-पुष्य नक्षत्र 27:20:27 परं आश्लेषा नक्षत्र
– सिद्धि योग 16:34:09 परं व्यतिपात योग
-प्रथम विष्टी करण 04:46
-द्वितिय बव करण 31:40
-राहुकाल-
10:31 / 12:01अशुभ
-अभिजीत 11:58 / 12 :51शुभ
-सूर्य- कर्क राशि
-चन्द्र- कर्क राशि
अहोरात्र)
भद्रान्तः 07:21
अमृत योग 18:07 या
पुष्य में राहुयुति

(7974032722)
शिवपुराण प्रार्थना
-वन्दे शिवं तं प्रकृतेरनादिं,
प्रशान्तमेकं पुरूषोत्तमं हि।
स्वमाया कृत्स्त्रामिदं हि सृष्ट्वा
नभोवदन्तर्बहिरास्थितो यः।।
मैं स्वभाव से ही उन अनादि शान्त स्वरूप , एकमात्र पुरूषोत्तम शिव की वन्दना करता हूं जो अपनी माया से इस सम्पूर्ण विश्व की सृष्टी करके आकाश की भांति इसके भीतर और बाहर स्थित हैं।
-वन्देऽन्तरस्थं निजगूढरूपं,
शिवं स्वतस्त्रष्टुमिदं विचष्टे।
जगन्ति नित्यं परितो भ्रमन्ति,यत्संनिधौ चुम्कलोहवत्तम्।।
(शिवपुराण रूद्रसंहिंता)
अर्थात्➖ जैसे लोहा चुम्बक से आकृष्ट होकर उसके पास ही लटका रहता है,उसी प्रकार ये सारे जगत् सदा सब ओर आसपास ही भ्रमणकरते हैं, जिन्होंने अपने से ही प्रपंच रचने की विधी बताई थी, जो सबके भीतर अन्तर्यामी रूप से विराजमान है तथा जिनका अपना स्वरूप अत्यन्त गूढ है, उन भगवान शिव की मैं सादर वन्दना करता हू।
जो विश्व की उत्पत्ति स्थिति और लय आदि के एकमात्र कारण हैं, गौरी गिरिराज कुमारी उमा के पति हैं। तत्वज्ञ हैं, जिनकी कीर्ति का कहीं अन्त नहीं है, जो माया के आश्रय होकर भी उससे अत्यन्त दूर हैं तथा जिनका स्वरूप अचिन्तय है, उन विमल बोधस्वरूप भगवान् शिव को मैं प्रणाम करता हूं।
शिवनाम महिमा
“शिवोतिनामदावाग्रेर्महापातक पर्वताः।
भस्मीभवन्त्यनायासात् सत्यं सत्यं न संशयः।।”
(शिवपुराण रू सृ 4/45)
“शिवनामतरीं प्राप्य संसाराब्धिं तरन्ति ते।
संसारमूलपापानि तेषां नश्यनात्यसंशयम्।।
संसारमूलभूतानां पातकानां महामुने।
शिवनामकुठारेण विना शो जायते ध्रुवम्।।”
(शिवपुराण रू सृ 4/51-52)
शिव इस नामरूपी दावानल से बड़े बड़े पापतकों के असंख्य पर्वत अनायास मस्म हो जाते हैं-यह सत्य है, सत्य है।इसमें संशय नहीं है।
जो भगवान शिव के नामरूपी नौका का आश्रय लेते हैं, वे संसार-सागर से पार हो जाते हैं ।संसार के मूलभूत उनके सारे पाप निःसंदेह नस्ट हो जाते हैं।
महामुने! संसार के मूलभूत पातकरूपी वृक्ष हैं ,उनका शिवनामरूपी कुठार से निश्चय ही नाश हो जाता है ।
निज चिन्तन➖
“अहंकार” से “विकार” उपजता है—–,
“विकार” उपजने से “विचार” बदलते हैं——-,
और “विचार” बदलते ही——,
“मानव” का “आकार” “प्रकार” बदल जाता है——-!
(चलते रहिये)
श्रीकृष्णं शरणं ममः
डाॅ गीता शर्मा , ज्योतिष मनीषी,
माँ गायत्री ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र, कांकेर,छत्तीसगढ
(7974032722)